GIrl Worship ( कन्या पूजन )

                                                GIrl Worship ( कन्या पूजन )



       आज  ठाकुर साहब की हवेली में बहुत चहल पहल थी । आज नवरात्रि का आखिरी दिन था । कन्या पूजन के बिना तो नवरात्रि के व्रत पूरे ही नहीं होते । ठाकुर साहब की हवेली में तो गांव के सब लोग लालियत रहते थे अपनी बच्चियों को भेजने के लिये । एक उत्सव सा मनाया जाता था । ठाकुर साहब के तीन बेटे थे । बेटी कोई नहीं थी । ठकुराइन बहुत शान्त रहती थी या कहिये ठाकुर साहब के उग्र स्वभाव से बहुत डरती थी ।तीनों बेटे शादी शुदा थे । दोनों बड़ी बहुओं पर दो दो बेटे थे । तीसरी बहू गर्भवती थी । 

          ठाकुर साहब के घर में कोई कन्या नहीं थी । गांव वाले सोचते थे की इसी लिये कन्या पूजन इतनी धूम धाम से मनाया जाता है। जब कन्या पूजन चल रहा था दोनों बड़ी बहुयें दरवाजे की ओट से बड़ी हसरतों से बच्चियों को आंखो में आंसू भरे देख रही थी ।

बड़ी बहू बोली मंझली इन बच्चियों को बापू सा कितने प्यार से भोजन करा रहे हैं पर हम दोनों की बच्चियों का क्या कसूर था जो गर्भ में ही उनको मार दिया । मंझली बहू बोली दीदी बापू सा को केवल बेटे चाहिये बेटियों से बहुत नफरत है। बस दीदी छोटी की टैस्ट रिपोर्ट सही आये नहीं तो उसको भी यही दंश झेलना पड़ेगा ।

        इतनी देर में ठकुराइन की तेज आवाज आई दोनों बहू डर गयी मां सा में इतनी हिम्मत कहां से आगयी ।

ठकुराइन ठाकुर साहब के सामने डटी हुई थी। वह बोल रही थी ठाकुर साहब बहुत होगया दिखावा पहले मेरी दोनों बच्चियों को दाई से जन्म लेते ही मरवा दिया। मै खून के आंसू पी कर चुप होगयी । उसके बाद भी आपका दिल नहीं भरा तो दोनों बहुओं की बच्चियों को भी दफना दिया । अब अगर छोटी की बच्ची के साथ कुछ किया तो मै भूल जाऊंगी की तुम मेरे पति हो । आज इसकी रिपोर्ट आगयी है और यह बच्ची जन्म लेगी । ठाकुर साहब ने जैसे ही मारने को हाथ उठाया ठकुराइन ने हाथ कस कर पकड़ लिया और कहा बस और नहीं ये कन्या पूजन का दिखावा बन्द करो मै भी ठकुराइन हूँ मेरे घर में कन्या आयेगी यह मेरा प्रण है । ठाकुर साहब ने देखा बाहर गांव वालों की भीड़ लगी है। सबकी नजरों में जहां खौफ नजर आता था आज घृणा नजर आ रही थी । तीनों बहुयें ठकुराइन से लिपट कर रोने लगी । ठकुराइन ने छोटी की पीठ पर हाथ फिरा कर कहा बहू अगली साल इन कन्याओं के साथ मेरी नन्ही परी का भी कन्या पूजन 

होगा । मेरा भी प्रण है।

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