Holika Dahan Katha (होलिका दहन कथा)

                                               Holika Dahan Katha (होलिका दहन कथा)




हर वर्ष फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को भद्रा रहित मुहूर्त में होलिका दहन किया जाता है। इस वर्ष होलिका दहन 28 मार्च दिन रविवार को है। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है। इस दिन लोग अपनी बुराइयों को दूर करने तथा सद्गुणों को ग्रहण करने का प्रण लेते हैं और अगले दिन रंगवाली होली खेलते हैं। दोस्तों, रिश्तेदारों और ​परिजनों को होली की शुभकामनाएं भी देते हैं। होलिका दहन से जुड़ी हुई 3 पौराणिक कथाएं है। इनके अतिरिक्त लोकप्रिय कथा भक्त प्रह्लाद की है, जिसे हिरण्यकश्यप की बहन होलिका आग में लेकर बैठ जाती है, लेकिन श्रीहरि की कृपा से प्रह्लाद बच जाते हैं और होलिका मर जाती है। जागरण अध्यात्म में आज हम आपको हो​लिका दहन से जुड़ी उन  कथाओं के बारे में बता रहे हैं।   

                                                        शिव तथा कामदेव की कथा

                                 


पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती को भगवान शिव के साथ परिणय सूत्र में बंधना था, लेकिन वे ध्यान और तप में बेहद लीन थे। इस बात से चिंतित माता पार्वती ने कामदेव से मदद ली। वे प्रेम के देवता माने जाते हैं। माता की मदद करने के लिए कामदेव ने भगवान शिव पर पुष्प बाण से प्रहार कर दिया। पुष्प बाण के प्रहार से लोग प्रेम के वशीभूत हो जाते हैं, लेकिन भगवान शिव के साथ ऐसा नहीं हुआ।

तप भंग होने से भगवान भोलेनाथ इतने क्रोधित हो गए कि उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोला और काम देव को अपने क्रोधाग्नि से जलाकर भस्म कर दिया। कामदेव की ऐसी हालत देखकर उनकी पत्नी रति भगवान शिव से क्षमा मांगने लगीं और उनको मूल स्वरूप में लौटाने की प्रार्थना करने लगीं। तब तक भगवान शिव शांत हो चुके थे। उन्होंने कामदेव को फिर जीवित कर दिया। जिस​ दिन वे भस्म हुए उस दिन होलिका दहन होने लगा। अगले दिन उनको प्राणदान मिला था, इसलिए होलिका दहन के अगले दिन रंगों का त्योहार होली मनाई जाने लगी।

                                                                 पूतना वध कथा   

                                             


कंस को पता था कि वह अपने भांजे श्रीकृष्ण के हाथों मारा जा सकता है। इस वजह से उसने कई बार भगवान ​श्रीकृष्ण को मारने का प्रयास किया। इसी क्रम में उसने एक बार पूतना नाम की एक राक्षसी को श्रीकृष्ण को मारने के लिए गोकुल भेजा। तय योजना के अनुसार, पूतना बाल श्रीकृष्ण को लेकर चली गई और स्तनपान कराने लगी। उसी दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया। उस दिन फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि थी, इसलिए हर वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन होने लगा।

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