सब मिलकर ही कोविड-19(2 )को हरा सकते हैं (Together they can defeat Covid-19 (2)



डॉ एम डी सिंह 
सी एम डी , एम डी होमिलैब प्रा लिमिटेड महाराज गंज गाज़ीपुर उ प्रा भारत  के शेयर किये कुछ अंश 

         सब मिलकर ही कोविड-19(2 )को हरा सकते हैं (Together they can defeat Covid-19 (2)

        


                       कोरोना का नया प्रसार अनियंत्रित रूप धारण कर चुका है। हर दिन नया रिकॉर्ड टूट रहा है ।24 अप्रैल को 3460000 से ज्यादा कोरोना संक्रमित देश के विभिन्न हिस्सों में पाए गए ,2700 से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवाई। जब ऐसा लगने लगा था की कोरोना एक दुःस्वप्न था इसने प्रत्यक्ष रूप से पुनः प्रकट होकर सबको सकते में डाल दिया है । यह क्या विडंबना है कि जब संसाधनों की कमी थी चिकित्सा संसाधन आज के स्तर से बहुत नीचे थे, सीमित साधनों के मध्य महामारिओं से बचने का मुख्य उपाय लॉकडाउन ,सोशल डिस्टेंसिंग अथवा पलायन उस समय जीवनरक्षा के लिए आमजन द्वारा उठाए गए सफल उपाय के रूप में देखे गए । आज भी सारी दुनिया उन्हीं उपायों पर विश्वास करने को बाध्य है यह आधुनिक चिकित्सा जगत के लिए बहुत ही सोचनीय विषय है।

भय भ्रम और भगदड़ कोरोना के नए रूप को और घातक बना रहे हैं। सरकार और विपक्ष दोनों अपने भविष्य के गुड़ा गणित में उलझ कर किंकर्तव्यविमूढ़ दिख रहे हैं। आमजन अपनी मृत्यु का कारण व्यवस्था को मान रहे हैं। अचंभित कर देने वाली बात तो यह है कि हम एक अकेले अपने जीवन की रक्षा का भार उठाने को तैयार नहीं और दूसरों से आशा रखते हैं कि कोई आकर हमें बचा लेगा। सच तो यह है कि मृत्यु से डराने और नियमों को पालन करवाने के लिए कानून का डर दिखाने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता। लोग नियम तोड़ सजा से बचने के अनेकानेक उपाय ढूंढने में अपनी सारी शक्ति समय और सुचिता की हत्या करते रहेंगे। और साथ ही सारी व्यवस्था को भी ध्वस्त कर देंगे।

यदि हर व्यक्ति सिर्फ अपने को बचाने का लक्ष्य तय कर ले तो करोना को हराना चुटकी का खेल हो जाएगा। यदि हर व्यक्ति मान ले कि उसे कोरोना से लड़ने के लिए अखाड़े में उतरना ही पड़ेगा और उसे पटखनी देनी ही होगी तो हमारे भीतर उसे हराने की होड़ पैदा हो जाएगी। और उसे ही पैदा करना होगा । यह होड़ चिकित्सा पद्धतियों के संयुक्त प्रयास से ही पैदा की जा सकती है। 

प्रत्येक चिकित्सा पद्धति श्रेय लेने के प्रयास में जुटी हुई दिख रही है । आज जरूरत है बेटन दौड़ दौड़ने की। प्रत्येक चिकित्सा पद्धति की अपनी एक सीमा है। वह वहां तक दौड़े और आगे बेटन दूसरी को थमा दे। हर चिकित्सा पद्धति के पास अपना एक इतिहास है । उसने पिछले महामारी में कौन सी भूमिका निभाई और कितनी सफलता पाई उसको सामने रख वह अपना संपूर्ण सहयोग दे सकती है। अथवा उस इतिहास का उपयोग आज की महावारी से लड़ने के लिए सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

वैश्विक महामारी की अवस्था में जन स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव बड़े से बड़े अर्थव्यवस्था वाले देशों के सामने खड़ा हो जाता है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण महामारी को रोकने का सारा भार एक चिकित्सा पद्धति एलोपैथी पर डाल दीया जाना है। महामारी की विभीषिका जितनी बड़ी होगी संसाधनों की कमी उतनी ही बढ़ती जाएगी। जिस देश के पास मल्टी लेयर चिकित्सा सुविधाएं होंगी वही महामारी से सफलतापूर्वक लड़ पाएगा। वह भी तब जब स्वास्थ्य जन आंदोलन बन जाए। यह आंदोलन राजनैतिक सामाजिक और व्यक्तिक जागरूकता और विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों की संपूर्ण सहभागिता के साथ समन्वय स्थापित कर के ही खड़ा किया जा सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का राष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठनों के साथ एवं राष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन का प्रांतीय स्वास्थ्य संगठनों के साथ तथा प्रांतीय स्वास्थ्य संगठनों का स्थानीय स्वास्थ्य केंद्रों के साथ एक मजबूत दायित्व पूर्ण समन्वय स्थापित होना चाहिए। साथ ही स्वयंसेवी संस्थाओं की सहभागिता और राजनैतिक पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर सभी राजनीतिक पार्टियों को मानवीय मूल्यों के आधार पर व्यवहार करना चाहिए। तभी हर व्यक्ति के अंदर अपने स्वास्थ्य के प्रति चेतना का जागरण कर पाना संभव होगा। यही व्यक्तिक जागरण विश्व को इस वैश्विक महामारी कोविड-19 से मुक्त करा पाएगी।

भारत के पास एलोपैथिक के अतिरिक्त आयुष मंत्रालय के अंतर्गत पांच अन्य चिकित्सा पद्धतियां अपना संपूर्ण सहयोग देने को तैयार हैं। यह पद्धतियां है आयुर्वेद यूनानी, होम्योपैथी , सिद्ध और योग। इनका संपूर्ण एवं सफल उपयोग ही पूरे विश्व को कोविड-19 से मुक्त करा सकते हैं।

यहां मैं एक -एक कर हर चिकित्सा पद्धति की उपयोगिता और दायित्व को गिनाने का प्रयास करूंगा-

सिद्ध

इसे घरेलू अथवा सामाजिक पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली भी कहा जा सकता है। सारी दुनिया में हर जगह आदिकाल से अब तक रोगों से लड़ने का मनुष्यों के पास प्रारंभिक हथियार यही रहा है। आज भी इसके योगदान को कम करके नहीं आंका जा सकता। हर देश धर्म समाज और परिवार में जहां अनुभवी दीर्घजीवीओ की संख्या प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं, वहां पारंपरिक चिकित्सा पद्धति अब भी अपना योगदान समाज और व्यक्ति के स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को दूर करने में लगी हुई है। मनुष्य के सामाजिक प्राणी बनने के बाद साथ-साथ रोग भी चलने लगे। बड़े बुजुर्गों के पास अनेकानेक महामारिओं के अनुभव हैं। मेरी मां ने बताया उन्होंने चेचक ,प्लेग और कालरा तीनों महामारियों को देखा हुआ है।

स्मालपॉक्स की महामारी आने पर -

साफ सफाई, आइसोलेशन , तेल का प्रयोग खाने-पीने लगाने हर तरह से बंद। क्योंकि स्मालपॉक्स ड्रॉपलेट इनफेक्शन था ऐसी अवस्था में तेल अच्छे वाहक साबित होते। मुख्य द्वार पर नीम के पत्तों सहित गाछें टांग दी जाती थीं जिससे सामाजिक दूरी बनाना आसान हो जाता था। पूजा-पाठ और मंत्रों की सहारे लोगों में जागरूकता और अनुशासन का पालन करवाया जाता था ।सभी इसे मानने के लिए बाध्य थे बिना किसौ प्रशासनिक दबाव के।

प्लेग की महामारी आने पर-

किसी घर में अपने ही चूहा मरने पर पूरे गांव में खबर कर दिया जाता था। सभी लोग गांव छोड़ देते थे। वह गांव स्वतः ही कंटेनमेंट एरिया घोषित हो जाता था।

हैजा का प्रकोप होने पर-

गर्मी के दिनों में एशियाटिक कालरा का एपिडेमिक के रूप में प्रकोप भारतवर्ष ने कई बार देखा झेला लड़ा और जीता। आम जन ने बचाव के अनेक उपाय ढूंढे।

भोजन रहन सहन और साफ सफाई में अनेक अपेक्षित बदलाव लाया। बाद में भारत ने ही इस कालरा का सफल टीका खोज कर पूरी दुनिया को इस महामारी से निजात दिलाई। कहने का तात्पर्य यह है कि जो जो पारंपरिक तरीके बड़े बूढ़ों ने इन महामारियों से लड़ने के लिए अपनाए वे अब भी प्रासंगिक हैं। एवं पैनिक को फैलने से रोकने में सक्षम भी। 84 साल की मेरी मां के मन में इस रोग से कोई भय नहीं है। यह बात वह घर के सभी सदस्यों से कह भी रही हैं और नियमों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित भी कर रही हैं।

ऐसे ही वयोवृद्धों के अनुभव को आज मीडिया और आयुष मंत्रालय द्वारा सबके सामने लाना हतोत्साहित लोगों के भीतर पुनर्ऊर्जा का संचार करेगा।

योग- 

आयुष की दूसरी शाखा है योग। योग मन और शरीर के मध्य एक सार्थक समन्वय स्थापित करके व्यक्ति को रोग एवं आपदाओं से लड़ने की असीम शक्ति प्रदान करता है। विषम परिस्थितियों में मनुष्य की दैनिक जीवन शैली में बदलाव अपरिहार्य हो जाता है। जैसा कि आज भी पूरी दुनिया में दिखाई पड़ रहा। योग द्वारा इस बदलाव को आसानी से आत्मसात किया जा सकता है। योग का मतलब ही है परिस्थितियों के सापेक्ष हो जाना। योग समय और स्थान नहीं लक्ष्य और समाधान को जोड़ने की सहज साधना है। आज जब ऑक्सीजन की कमी महसूस हो रही है ऐसी अवस्था में वृक्षासन ,ताड़ासन और वैसे ही खड़ा होकर किए जाने वाली कई अन्य आसान, एवं लेट कर किए जाने वाले भुजंगासन एवं शवासन हमारी ऑक्सीजन पर निर्भरता को कम कर देंगे। मात्र 15 सेकंड किया जाने वाला भस्मक हमारे फेफड़ों को वेंटिलेटर बना सकता है।

स्वस्थ शरीर और अनावश्यक वृत्तियों से मुक्त मन व्यक्ति की जीवनी शक्ति को इतना बढ़ा सकते हैं कि वह किसी भी रोग और आपदा से सफलतापूर्वक लड़ सके।आज मात्र 5-5 मिनट के सुबह ,दोपहर और रात तीनों प्रहरों में योगासन एवं यौगिक क्रिया की तीन पालियां कोरोना जैसी महामारी को भी हराने में सक्षम हैं। याद रखें योग व्यायाम नहीं। जहां व्यायाम में ऊर्जा का क्षरण होता है वहीं योगासन से उर्जा को आयाम मिलता है। आज पूरे देश में योग शिक्षकों की बड़ी संख्या उपलब्ध है जिनका उपयोग कोविड-19 पार्ट 2 से लड़ाई में अच्छे ढंग से किया जा सकता है । वे सबसे मजबूत वारियर साबित हो सकते हैं।

यूनानी चिकित्सा पद्धति-

आयुष मंत्रालय के अंतर्गत यह तीसरी चिकित्सा पद्धति है जिसके जोशान्दे, रोगन, अवलेह, शरबत और हलवा इत्यादि अनेक तरह से लाभकारी हैं।
इस चिकित्सा पद्धति के पास भी अनेक महामारियों से देश-विदेश में लड़ने के अनेक अनुभव उपलब्ध हैं। इस पद्धति के चिकित्सकों का उपयोग भी जन स्वास्थ्य रक्षा में आज के माहौल को देखते हुए अपरिहार्य है।

आयुर्वेद-

यह विश्व की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धतियों में से एक है। इसे हर चिकित्सा पद्धति की जननी माना जाता है। इस चिकित्सा पद्धति के पास अनेकानेक इम्यूनिटी बढ़ाने वाली शक्तिशाली कारगर औषधियां उपलब्ध हैं। 
जिनका प्रयोग आज पूरे देश में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। पूरे देश में फैले आयुर्वेदिक चिकित्सकों का उपयोग इस महामारी से लड़ने में प्रमुखता से करना बुद्धिमत्ता पूर्ण निर्णय होगा। आयुर्वेद के अनेक काढ़े, भस्म ,चूर्ण , गरारा, पुल्टिस, तेल हर चिकित्सा पद्धति के साथ प्रयोग किए जाते रहे हैं, यह उसकी उपयोगिता और विश्वसनीयता को प्रमाणित करती है। उनकी चिकित्सकों का भी सम्मान पूर्वक सहयोग अत्यंत अपेक्षित है। गिलोय, तुलसी ,अश्वगंधा, काली मिर्च अडूस, गोघृत ,कपूर, लौंग, दालचीनी अजवाइन, सेंधा नमक इत्यादि सफलतापूर्वक प्रयोग किए जा रहे हैं।

होमियोपैथी

वैसे तो यह दुनिया की सबसे कमउम्र चिकित्सा पद्धति है किंतु संभावनाएं इसके पास सबसे ज्यादा हैं। अतीत में इसने अनेक महामारिओं में दुनिया की अतुलनीय सेवा की है। जब दुनिया में प्लेग महामारी के रूप में फैला उस समय होम्योपैथिक औषधि इग्नेशिया ने दुनिया को बचाया। एक बार जब अमेरिका में पशुओं पर ऐनथ्रैक्स का आक्रमण हुआ तो वहां की अर्थव्यवस्था डगमगा गई । उस समय एक पशु चिकित्सक ने मर रहे जानवरों के नोजोड से ऐन्थ्रेसाइनम नामक औषधि बनाई जिसके प्रयोग ने हीं अमेरिका के पशु उद्योग को नवजीवन दिया। होम्योपैथी में जितने भी नोजोड्स हैं वे सभी एक तरह के वैक्सीन ही हैं।जरूरत पड़ने पर वे सभी वैक्सीन की तरह ही कार्य भी करते हैं।

होम्योपैथी आज सारी दुनिया में सबसे ज्यादा विकसित

अपने देश भारत में है। इसके चिकित्सकों की संख्या भी बहुत बड़ी है जो पूरे देश में फैली हुई है उनका प्रयोग सही ढंग से किया जाए तो इस महामारी से लड़ने में वे बड़े सहयोगी सिद्ध होंगे। होम्योपैथी की औषधीय संपदा सबसे बड़ी और सस्ती है और उन्हें जन-जन तक पहुंचाना होम्योपैथों के लिए एक सामान्य प्रक्रिया होगी। आयुष द्वारा निर्देशित होम्योपैथिक औषधि आर्सेनिक एल्ब को पूरे देश में बहुत लोगों ने खाया है और अब भी लगातार खा रहे हैं। आज सोशल मीडिया द्वारा बहुत आसानी से यह जानकारी इकट्ठा की जा सकती है की आरसैनिक एल्ब 30 खाकर कितने लोग अभी भी सुरक्षित हैं और कितने लोग संक्रमित हुए। नए संक्रमण की अवस्था में उसकी पोटेंसी 200 की जा सकती है एवं रोग कारक की बारंबारता को देखते हुए उसे रोज एक खुराक खाने का निर्देश दिया जा सकता है। जहां किसी भी पैथी के पास सर्वमान्य चिकित्सा उपलब्ध नहीं है ऐसी अवस्था में लाक्षणिक आधार पर भी काम करने वाली होम्योपैथिक औषधियां ज्यादा कारगर सिद्ध हो सकती हैं एवं सफल होमियोपैथिक चिकित्सक ऐसा सफलतापूर्वक कर भी रहे हैं। उनके अनुभव पूर्व सर्वेक्षण का लाभ भी लाभकारी सिद्ध हो सकता है यदि भी प्रमाण दे सकें तो। 
आज कोई भी शत-प्रतिशत लाभ का दावा नहीं कर सकता फिर अधिकतम सहयोग कर सकने वाली दवाओं पर दांव लगाया जा सकता है। होम्योपैथिक दवाएं भी अन्य चिकित्सा पद्धति वाली दवाओं की तरह एलोपैथिक दवाओं के साथ सफलतापूर्वक प्रयोग की जा सकती हैं। आज अधिसंख्य सरकारी चिकित्सालयों में होम्योपैथिक चिकित्सा अधिकारी भी पोस्ट हैं।अस्पतालों में भर्ती क्रिटिकल मरीजों को एलोपैथिक दवाओं के साथ साथ लाक्षणिक आधार पर होम्योपैथिक दवाओं को देकर भी होमियोपैथी के प्रभाव को जाना भी जा सकता है और मरीज को लाभ भी दिया जा सकता है। एलोपैथिक दवाओं के साथ हूं पैथिक जाएं काम नहीं करेंगे या दुष्प्रभाव पैदा करेंगी ऐसा सोचना गलत है। इससे एक ही चिकित्सा पद्धति पर पड़ने वाले दबाव में काफी हद तक कमी होगी।

आज ऑक्सीजन की कमी से पूरे देश में त्राहि-त्राहि मची हुई है। यह खबर सुनकर अधिकांश लोग चाहे बीमार हो या नहीं आक्सीजन के जुगाड़ में पड़ जाएंगे। चिकित्सा के नेगेटिव पक्ष वाले समाचार भी पैनिक पैदा कर रहे हैं जबकि उसके लिए कोविड-19-2 ही काफी है।
होम्योपैथिक औषधि इग्नेशिया 200 यदि सबको खिला दिया जाए तो देश भर में फैल रहे पैनिक को बहुत हद तक कम किया जा सकता है। इससे ऑक्सीजन पर निर्भरता अपने आप कम हो जाएगी।
ऑक्सीजन लेवल कम हो जाने पर एलोपैथिक दवाओं के साथ 
स्पाइडोस्पर्मा Qएवं 30 फेफड़े कमजोर अथवा निमोनिया होने पर,
हिपैटिका Q अथवा 30 फेफड़ों में न्यूमोनिया के कारण हिपेटाइजेशन होने पर ,
वैनेडियम 30 मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी होने पर 200 , 
न्यूमोकोकिनम 200 किसी भी प्रकार की न्यूमोनिया होने पर।
लारोसेरेसस Q अथवा 30 हार्ट में कमजोरी अथवा एंग्जाइटी के कारण ऑक्सीजन की कमी महसूस होने पर
इगनेशिया 200 तनाव और भय के कारण लंबी लंबी सांस खींचे किंतु फिर भी ऑक्सीजन फेफड़ों में जाता हुआ न महसूस हो तो
इसके अतिरिक्त और भी होमियोपैथिक औषधियां हैं जिन्हें क्वालिफाइड चिकित्सक की राय पर रोग की किसी भी अवस्था में अन्य चिकित्सा पद्धति की औषधियों के साथ प्रयोग किया जा सकता है।

स्वयंसेवी संस्थाओं, राजनीतिक पार्टियों , चिकित्सा संस्थानों ,बुद्धिजीवियों एवं मीडिया को पॉजिटिविटी के साथ एक एक व्यक्ति को जागरूक करने के लिए अपना संपूर्ण योगदान देना चाहिए तभी इस महामारी से बचाव संभव है।
बचाव के लिए कोविड-19 के पहले वेरिएंट में सबसे ज्यादा लक्षण न्यूयमोंकोकिनम 200और आर्सेनिक अल्ब 200 के थे, नए वाइरस के संक्रमण को रोकने के लिए उपरोक्त दोनों दवाओं के साथ मार्बीलिनम 200 को भी परखा जा सकता है। इन औषधियों को आयुष मंत्रालय द्वारा अच्छी तरह जांच परख कर पूरे देश के लिए जारी किया जा सकता है । इससे इनकी विश्वसनीयता पर सवाल नहीं उठेगा एवं कुछ ही दिनों में इन दवाओं के सर्वेक्षण रिपोर्ट भी आ जाएंगे। जो पूरे विश्व के लिए वरदान साबित होंगे एवं होमियोपैथी को भी उसका उचित सम्मान मिल पाएगा। सबको वैक्सीन लगने तक उपरोक्त होम्योपैथिक औषधियों की कुछ खुराकें एक क्रमबद्धता के साथ देकर लंबे समय तक उन्हें सुरक्षा किया जा सकता है एवं एलोपैथी को सहयोग भी।

(नोट- कोविड 19 के लिए बनी किसी कारगर वैक्सीन को भी पोटेंटाइज करके होम्योपैथिक दवा बनवाई जा सकती है । और मान्यता प्राप्त जीएमपी सर्टिफाइड होमियोपैथिक औकंपनियों द्वारा आयुष के निर्देश पर उसकी उपयोगिता का सर्वेक्षण करवा कर जन सामान्य के लिए जारी किया जा सकता है।)


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